हरित द्रुम, सुरम्य वन
सौरभित पुष्प, कुसुमित उपवन
भवरों की गुंजन, विहगो का चहचहन
पपीहों ककी पीहपन, कोयल की कूकूहन
मलय
समीर, मंद बयार
प्रकृति
का श्रृंगार,
बसंत बहार
याद
आया फिर वो प्यार
वामा
का मोहक आकार
बैठी बगिया में वो तरूणी
छटा बिखेरती मृगनयनी
मुख प्रफुल्लित,नयन पुलकित,
सांस परिमलित,मैं आबंधित
फूलों पर मंडराता अलिकुल
था
रमणी-मिलन को मैं आकुल,
सुरबाला, देवबाला
चारूमती, कमनीय
देवांगना, प्रमदा
या थी वो दमयंति
कैसी मेरी ये आसक्ति
उसकी शुभ्र कांति
मिटाती मेरी क्लांति
प्रफुल्ल वदन, मदीय नयन
अथक
ताकूँ मैं दिन-रैन
लागी
लगन, मैं मगन
रतिपति
विचरे हो जैसे मन
हुआ
प्रेम प्रस्फुटन
दो
मन- ऑंगन
था
पुलक-प्रेम वातावरण
बातें हुई कस्मों की वादों की,
उडुओं की माला और
इंदु की करधनी लाने की,
शफक को जमीं पर लाकर
धरा को इड़ा बनाने की
पूनम
की रात, था उसका साथ
चूम
आलिक ले हाथों में हाथ
स्निग्ध दृष्टि से देख अभिराम सुरत
खाई कस्में मिलते रहेंगे बरह-सुरत
ले कई अरामन दिल में, हुए रूखसत
कहॉं पता, अब मिलन नही, थी फुरकत
बीत
गई कई ऋतुराज
न
आई वो अब भी आज
किस
बात से थी वो नाराज
सुनी
न मेरी क्रंदित आवाज
कामसखा भी चली बिस्तर समेट
हुई न उससे अब भी भेंट
विकल मन कौतुक निगाह
दिन रात निहारूँ मैं राह
इंतजार
में बीते कई दिन कई पहर
ग्रीष्म
तो गुजरा ही मेह भी हुई प्रखर
पूनम
की चॉंदनी भी बनी बादल का ग्रास
थी
मेरी विरह वेदना में वो भी उदास
विरह में सावन भी अषाढ़,
झिझिर भी झमाझम लगती है।
सजल नेत्र, सजल मेघ सी,
बारिश-बूँद भी अश्रु-नीर लगती है।
न
देख मिलन की आस
कर
दूँ अवसानित सांस
हुआ
जीवन अब विपर्यस्त
पल
भर में कर दूँ अस्त
चाह
बची बस, इस रात
चिर
प्रमीलन और विश्रांत।
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