कौन है तू, (कुछ अंश)
उनके
सम्मोहन से ना हो निहाल
कर
ले स्वयं से तू कुछ सवाल
क्यों
फंस गया तू उनके जाल में
क्यों
अटक गया उस मायाजाल में
क्यों
तू कर रहा धरा को रक्त–रक्त
क्या
ऐसे पहुँचेगा इरा में तू भक्त
कत्लेआम
में क्यों तू उनका साथ दे
दंगो
के आग में क्यों अपना हाथ दे
नाम-ए-धर्म क्यों करके खून को उबाल
एक-दूसरे के रक्त से हाथ करके लाल
मानवता का किया क्या हाल देख
पवित्र धरा कैसे हुई ये लाल देख
मौत का होता नंगा तू नाच देख
सब भस्म, दंगा का वो आंच देख
कैसे
हुई गलियां ये लाल-लाल देख
खून
से सने अपने हाथ लाल देख
कोख
सूनी मॉं का तू हाल देख
बिन मॉं-बाप बच्चे तू बेहाल देख
सुन गूँजते कंपकपाते रूदन को
सुन दिल झकझोरते क्रंदन को
सुन सन्नाटों के चीत्कार को
सुन तू डरी सहमी पुकार को
कोने
में दुबका बचपन तू देख
किसी
का लुटता चमन तू देख
खो
गया कहीं वो अमन तू देख
कट्टरता
का हर जगह वमन देख
देख धाराशाई
होती मानवता को
देख अतिशाई विद्वेष की नग्नता को
देख धर्म की आड़ में होते क्रुरता को
देख लोभियों की धार्मिक पिशुनता को
नन्हीं
जान लेती वो
कायरता देख
रहम
मांगती ऑंखों की
कातरता देख
आस्तिकता
की आर में निर्ल्लज्जता देख
उनके
जाल में फंसी अपनी नैतिकता देख
देख डरी
सहमी दृष्टि को
देख खून से सनी मिट्टी को
देख लथ-पथ लाशों के ढ़ेर को
देख सूने पड़े कई मुंडेर
को
देख सिसकाते काले अंधेर को
देख किसी के उजरे कनेर को
रक्तरंजित
अपने तू हाथ देख
बच्चे
कई बिलखते तू अनाथ देख
काल
का विशाल तू कपाल देख
हाथ अपने तू लाल-लाल देख
जान
ले बेगुनाहों को वो पाखण्ड देख
लालसा
हेतु इंसानियत तू खंड-खंड देख
अपने
पत्थर दिल को जरा पिघला
अपने
कातिल ऑंख को जरा रूला
भूल
नफरत किसी को गले लगा
फैला
बांहे किसी का दर्द सहला
राम
नाम पर मुद्दों से भटकाव
अब न सह
अल्लाह
नाम पर भाईचारा में रिसाव अब न सह
उत्सव
के नाम पर फैल रहे तांडव अब न सह
धर्म
रक्षा के नाम पर झूठे
पांडव अब न सह
धर्म
के नाम पर खिलवाड़ अब न सह
भाईचारा
में और दरार अब न सह
भाईचारा
ही बनाती है हमें सबल
क्यों
भूल कर उसे बन रहे निर्बल
बना
दिया हमने विद्वेष का वो दलदल
जहाँ
है पूरी मानवता
का रसातल
………… जारी अगले अंक में
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