प्रदूषण गाथा (pollution gaatha) (pollution in delhi)


आज फिर दिल्‍ली हुई प्रदूषित
आज फिर हुए हम चिंतित

पर जब कटते हैं पेड़ तो,
          हम न विचलित   होते।
जब लगाते गाडि़यों का अंबार
              हम न विस्‍मित होते।
जब खेलते पार्यावरण से,
        हम न कोई मनन करते।
जब दूहते अंधाधुंध प्र‍कृति को,
       हम न कोई चिंतन करते।
जब घरो में वातानुकूलन करके,
             हम ठंडी आहें भरते।
जब सड़को पर गाड़ी दौराकर, 
         हम मजे से खूब इतराते।
जब नाम परंपरा पटाखे जलाते
   हम उछल कूद जश्‍न मनाते।
जब इल्‍जाम दूसरो पर लगाते
    हम अपने मन को बहलाते।
जब स्‍वच्‍छ हवा के बदले
                 हम मंद‍िर मॉंगते।
जब पार्यावरण के बदले
              हम मस्जिद बचाते।
तब हम क्‍यों न चिंतित होते। 

         आज अचानक मीडिया क्‍यों है चिंतित
         आज  पूरोधा  भी  क्‍यों हैं आश्‍चर्ययित
         आज परंपरा ने क्‍यों न लिया मन में आकार
         आज  हिंदु-मुस्लिम  पर क्‍यों न हुई तकरार
         आज मंदिर-मस्जिद पर क्‍यों न हुई बात
         आज धुँए पर ही क्‍यों हुई तकरीरे दिन-रात

अब   क्‍यों   इतना   हल्‍ला  मचाया
अब   क्‍यों   ऐसा   माहैाल  बनाया
क्‍या प्रदूषण ने आज जाल फैलाया
क्‍या आज ही फैला जहरीला साया
क्‍या अब ही  AQI की चाल बौराई
क्‍या  अब  ही मास्‍क की बाढ़ आई

पहले   मनी   खूब    दिवाली 
अब  जल  रही  खूब  पराली
सड़को पर पहले से ही थी गाड़ी
अब इन दोनों ने भी हवा बिगाड़ी
इसने ऐसा फैलाया प्रदूषण
जैसे थे दो भाई खर-दूषण

हमने  हरित  दिल्‍ली  को  क्‍या  बना  दिया
सफेद आसमान में स्‍याह गुबार लगा दिया

अब  प्रदूषण  से  हम  क्‍यों  हैं चिंतित
जब पार्यावरण से हैं ही नहीं आबंधित
यूँ  करते  हम  पार्यावरण  को दोहित
जैसे   हो   हम  प्रकृति  से    विद्वेषित
समझ नहीं हमें कि हम हैं पार्यावरण आलंबित
समझ  नहीं  हमें कि हम  उससे  ही  हैं पोषित

अब   तो  विस्मित  होना  भी  बेमानी   है
स्‍वच्‍छ भविष्‍य बस काल्‍पनिक कहानी है
ऐसे धूँध तो बस अब नियति है
क्‍योंकि   गुस्‍से   में  प्रकृति  है
अभी  तो  धीमी  आवृति है
आने  वाली घोर विपत्‍ती है

बस एक ही विकल्‍प बचती है
विमर्श, विचार, चिंता, आश्‍चर्य और मौत।  



Comments

Unknown said…
Very nice. Keep it up