क्या वो सपना था ? |
तेरी पाकीज मुहब्बत का पाकार होना था
तेरी लबों के मुस्कान पर निसार होना था
तेरी हर छुअन के अहसास में डूबना था
तेरी मखमली सांसो के बहार में तैरना था
पर क्या वो सपना था
तेरी जुल्फों की शीतल छांव में सोना था
तेरी आगोश में बैठ दुनिया बिसराना था
तेरी चन्द्रमुख देख उस इंदु को बिसराना था
तेरी दामन को उडुओं से सजाना था
पर क्या वो अफसाना था
तेरी आँखों की गहराई में उतरना था
तेरे मन के हर तार को छेड़ना था
तेरी दिल के दिवार को चुमना था
तेरे रोम रोम में प्यार भरना था
पर क्या वो फसाना था
शाम को तुने पायल झनकाई थी
पर वो रात ने तेज पॉंव फैलाई थी
दरवाजे पर तेरे आने की दस्तक थी
पर वो बस तन्हाई की आहट थी
रात की चादर पर कोई थपकी तो आई थी
सुबह का आलम भी तेरी सांसो ने महकाई थी
रात की आगोश में मैं सोया था
तुझे नहीं खुद को ही खोया था
सुबह की किरणों ने जगाया था
उसने भी यही अहसास कराया था
हाँ वो सपना था,
हाँ
वो फसाना था,
हाँ
वो अफसाना था
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