विरोधाभास में उलझी दिल्ली🌵

🌳विरोधाभास में उलझी दिल्ली🌵

अगर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पिछले दो महीने के रियल टाइम आंकड़ो को देखा जाए तो 57 दिनों में केवल 1 दिन ऐसा था जब दिल्ली की हवा संतोषजनक थी। बाकी दिन खराब और बेहद खराब दर्ज की गई। पर ये कोई नई बात नही है क्योंकि दिल्ली इस प्रकार के आंकड़ो से गाहे बगाहे रूबरू होता ही रहता है। पर एक और आंकड़ा महत्वपूर्ण है कि पिछले 10 वर्षों में दिल्ली के बंजर भूमि के क्षेत्रफल में 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। अब प्रदूषण की ऐसी भयावह आंकड़ा और बंजर क्षेत्रफल की बढोत्तरी का कोई एक कारण तो है नही लेकिन ऐसी स्थिति को बढ़ाने में एक कारण जरूर अपनी भूमिका अदा करता है वो है पेड़ो की कटाई। अब इसे जनसंख्या का दबाव कहे या शहरीकरण की मजबूरी और परिणामस्वरूप नित नए बनते बसावट, जिसके कारण लगे लगाए हरे भरे पेड़ को काटा जा रहा है। अभी दिल्ली में 7 नए cpwd कॉलोनी के पुनर्विकास किया जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक सरोजनी नगर में उपलब्ध 13,128 पेड़ में से 11,000 पेड़ को काट दिया जाएगा। नौरोजी नगर के 1,513 पेड़ में से 1,465 पेड़ को, नेताजी नगर के 3,906 में से 3,033 पेड़, त्यागराज नगर में 349 में से 149 पेड़, मोहम्मद पुर में 562 में से 447 पेड़, कस्तूरबा नगर में 520 में से 520 पेड़ को काट दिया जाएगा। इसके अलावे प्रगति मैदान में जो पुनर्विकास के दौरान भी 1,713 पेड़ को काटा गया। अब इन कटे पेड़ के स्थान पर क्या कोई  नए  पेड़ लगाए जाएंगे या कितने नए पेड़ लगाए जाएंगे इसके बारे में कोई स्थिति स्पष्ट नही है। अब जबकि दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति इतनी भयावह हो रही है दिनों दिन फेफड़ों की बीमारी बढ़ती जा रही है तो क्या एक साथ हजारों की संख्या में इतने हरे भरे पेड़ काटना सही है वो भी तब जब हमारे यहां बीमारी के इलाज में लोगों का बहुत पैसा खर्च हो जाता है, उसे और बीमार होने की ओर अग्रसर किया जा रहा है। इस प्रकार से एक ओर पर्यावरण हितैषी योजना को ताक पर रख कर इतनी संख्या में पेड़ो को काटा जाना और दूसरी ओर स्वस्थ रहने के लिए जगह जगह योग करना हमे यही बताता है कि हम किस विरोधाभाषी दुनिया मे जी रहे है क्योंकि दोनों ही कसरते हमारी राजधानी दिल्ली में ही हो रही है। अगर इन विरोधाभाषी कृत्यों पर जल्द काबू नही पाया गया तो वो दिन दूर नही जब 365 दिन का डाटा बेहद खतरनाक और बंजरता भी शत प्रतिशत होगी।

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