तेरी यादों से नहीं लिपटना मुझे
फेंक दी मैंने चादर, बस यूँ ही।
तेरी सुरभि को नहीं महकना मुझे
बंद कर ली सांसे, बस यूँ ही।
तेरी यादों तले नहीं बैठना
मुझे
काट दी दरख्तों काे, बस यूँ
ही।
पर जैसे चीर तन्हाई कहीं से आहट आई
मैं निमिष सामने तुम्हें पाया, बस यूँ ही।
पर जैसे चीर तन्हाई कहीं से आहट आई
मैं निमिष सामने तुम्हें पाया, बस यूँ ही।
कहना बहुत कुछ था तुमसे
थे कई गिले-शिकवे तुमसे
लेना था दर्दों का हिसाब
करनी थी बातें बेहिसाब
पर मैं, बुत खड़ा रहा, बस यूँ ही।
चाह तेरी आगोश में
हो जाऊँ मदहोश मैं
तेरी छुअन के अहसास में
भूल जाऊँ दर्दो गम मैं
पर बस, तेरी हाथ को थामें
तुम्हें तकता रहा, बस यूँ ही।
Comments
Nice piece of thoughts. Need little improvement in rhyming , overall well pen down of thoughts.