बस यूँ ही..... bas yun hi.... (hindi poem)



तेरी यादों से नहीं लिपटना मुझे
फेंक दी मैंने चादर, बस यूँ ही।

तेरी सुरभि को नहीं महकना मुझे
बंद कर ली सांसे, बस यूँ ही।

तेरी यादों तले नहीं बैठना मुझे
काट दी दरख्‍तों काे, बस यूँ ही।

    पर जैसे चीर तन्‍हाई कहीं से आहट आई
    मैं निमिष सामने तुम्‍हें पाया, बस यूँ ही।

कहना बहुत कुछ था तुमसे
थे कई गिले-शिकवे तुमसे
लेना था दर्दों का हिसाब
करनी थी बातें बेहिसाब
पर मैं, बुत  खड़ा रहा, बस यूँ ही।

चाह तेरी आगोश में
हो जाऊँ मदहोश मैं
तेरी छुअन के अहसास में
भूल जाऊँ दर्दो गम मैं
पर बस, तेरी हाथ को थामें
तुम्‍हें तकता रहा, बस यूँ ही।


  


Comments

Unknown said…
Hmm, aisa lag raha hai ki mere kavivar thore ashant ho gai hai,jindagi ke jharokho se Jo chahiye wo dur ho gya hai.
Nice piece of thoughts. Need little improvement in rhyming , overall well pen down of thoughts.
PREM BANDhU said…
इससे पहले वाले में rhyming थोड़ा सही था, #प्रेम वेदना इसको पढ़े थे आप
Unknown said…
अच्छा है
Nikhil Anand said…
Keep it up prem....Good efforts