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दर्पण से पूछूँ, तो परछाई का है इन्कार,
चैन से पूछूँ तो अंगराई का है इन्कार
महफिल से पूछूँ तो तन्हाई का है इन्कार
नदी से पूछूँ तो गहराई का है इन्कार
अब तू ही बता दे कहॉं है तेरा वास।
दिल से पूछूँ तो धड़कन का है इन्कार
पत्तों से पूछूँ तो पतझड़ का है इन्कार
नींद से पूछूँ तो बेचैनी का है इन्कार
दिवा से पूछूँ तो निशा का है इन्कार
अब तू ही बता दे कब खत्म होगी आस।
चॉंद से पूछूँ तो अमावस का है इन्कार
तारे से पूछूँ तो भेार का है इन्कार
खुद से पूछूँ तो सांसो का है इन्कार
भीड़ से पूछूँ तो विरानी का है इन्कार
अब तू ही बता दे कहॉं बुझेगी प्यास
धूल से पूछूँ तो तूफां का है इन्कार
फूल से पूछूँ तो भंवरे का है इन्कार
नाव से पूछूँ तो पतवार का है इन्कार
झरनों से पूछूँ तो उँचाई का है इन्कार
अब तू ही बता दे..........
अब तू ही बता दे..........
अब तू ही बता दे..........
--- प्रेम बन्धु
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