मजदूर दिवस

मजदूर दिवस             ✍️बन्धु उवाच


बदहाली के कारण हो गया जो नंग धड़ंग है
भूख से जिसकी हर दिन हर पल ही  जंग है
आज उसी मजदूर के दिवस का प्रसंग है।

 कई दिवाली जिसकी गुजरी काली,
रोटी बिन होली कई हुए जिसके बेरंग है,
आज उसी मजदूर के दिवस का प्रसंग है।

मेहनतकश के हाथ के छाले तो नजर आते हैं,
मगर दर्द और छाले तो उसके अंग प्रत्यंग है,
आज उसी मजदूर के दिवस का प्रसंग है।

जिसे कई रात रोटियां मयस्सर होती नहीं है,
आँसुओं से पेट भरने का सिलसिला अभंग है,
आज उसी मजदूर के दिवस का प्रसंग है।

फुटपाथ पर अखबार बिछा चैन से सो जाता है,
भूख, गरीबी, बदहाली उसके जीवन का अंग है,
आज उसी मजदूर के दिवस का प्रसंग है।

पैर के छालों का उसे कहाँ ध्यान रहता है
निवाले की खोज में जमीन नापता ये मतंग है
आज उसी मजदूर के दिवस का प्रसंग है।

Comments