रियो से आस, पर कितनी?

RIO se kitni aas

--प्रेम बन्‍धु

रियो ओलंपिक, 2016 में भारत का सबसे बड़ा दल, 100 से भी अधिक खिलाड़ि‍यों का का दल। यह सुनकर एक सामान्‍य खेल प्रेमी होने के नाते सुखद अहसास होना लाजिमी था। लंदन ओलंपिक से ज्‍यादा पदक संख्‍या बढ़ने की आस मन में बलवती हो गई पर साथ ही साथ एक शंका ने भी घर कर लिया कि भले ही खिलाड़ि‍यों संख्‍या बड़ी हो पर क्‍या इस दल में वो माद्दा है कि वह लंदन से बेहतर प्रदर्शन न केवल पदक की संख्‍या के मामले में बल्कि स्‍वर्ण पदक के मामले में भी कर सके, क्‍योंकि लंदन में स्‍वर्ण ने भारत से दूरी ही बनाए रखा था। लंदन में हमने 6 पदक जीते, मैं सायना के प्रदर्शन को कमतर नहीं आंकना चाहता पर क्‍या चीनी खिलाड़ी ने अपना सेमिफाइनल मैच पूरा खेला होता तो ये संख्‍या 6 होती?

इस बार भारत का सबसे बड़ा दल जा रहा है तो आशा करना तो बनता है कि निसंदेह भारत अच्‍छा प्रदर्शन करेगा। इस आशा की नाव के सबसे बड़े पतवारी नि:संदेह हमारे निशानेबाज ही होंगे। 12 खिलाड़ि‍यों का निशानेबाजी दल से 3-4 पदकों की आशा बेईमानी नहीं होगी वो भी ऐसे में जब हमारे निशानेबाज विश्‍व स्‍तर पर अच्‍छा प्रदर्शन करते रहते हैं। बस जरूरत है इस विश्‍व स्‍तरीय प्रदर्शन को रियो में दोहराने का। अगर इन पदकों की आश को हकीकत में बदलना है तो अभिनव बिंद्रा को बड़े मैच के दबाव से बचते हुए देश वासियों के उम्‍मीदों पर खरा उतर कर फिर से बिजिंग दोहराना होगा। इसके अलावा जीतू राय, जिसने लगातार दो वर्ष विश्‍व चैम्पियनशिप जीता, गगन नारंग, जो 3 स्‍पर्धाओं में भाग ले रहे हैं, चैन सिंह, अपूर्वी चंदेला, हीना सिद्धु अगर ये सब दिन विशेष अपना शत प्रतिशत दे दें तो पदक क्‍या स्‍वर्ण भी झोली में आ सकता है।

इस बार पदक की आशा और आकंक्षा की हिलोरें हॉकी से भी उठ रही है और उसे बल मिला भारतीय टीम के चैंपियंस ट्राफी में बेहतरीन प्रदर्शन से, जहॉं फाइनल में आस्‍ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम को शूट-आउट तक रोके रखा। पर स्‍पेन में आमंत्रण टूर्नामेंट में रियो में भारत के सहभागी पूल टीम में से 3 के साथ खेलते हुए उसका प्रदर्शन आशानुरूप नहीं रहा, जिसका असर भारतीय कप्‍तान सरदारा सिंह के कप्‍तानी पड़ भी पड़ा। अब वो बतौर खिलाड़ी टीम में शामिल हैं, आशा है दबाव मुक्‍त होकर वो मिड-फिल्‍ड में अच्‍छा प्रदर्शन करेंगे। ओलंपिक ड्रा-फार्मेट के अनुसार भारत क्‍वार्टर फाइनल तक तो आसानी से पँहुचता नजर आ रहा है, अगर भारत अपने पूल में चौथे स्‍थान पर रहा तो संभावित आस्‍ट्रेलिआई मुकाबला उसे मुश्किल में डाल सकता है और पदक की संभावना को भी धूमिल कर सकता है। आशा करते हैं कि नये कप्‍तान पी.श्रीजेश न केवल अपना चैम्पियनंस ट्राफी वाला प्रदर्शन दोहरायें बल्कि उसमें अपेक्षित सुधार करते हुए पदक भी सुरक्षित करें। जहॉं तक बात महिला टीम की है तो उसका क्‍वार्टर फाइनल में पंहुचाना भी उपलब्धि होगी।

बैडमिंटन से भी हम आशा लगा सकते हैं, क्‍योंकि इस बार रिकार्ड 7 खिलाड़ी रियो जायेंगे। पदक के लिए निगाहें सायना, सिंधु और ज्‍वाला-पोनप्‍पा पर होगी। श्रीकांत का पदक के लिए खासा कमाल करना होगा वैसे इस बार पुरूष युगल टीम भी भाग ले रही है। पर सायना और सिंधु के साथ सबसे बड़ी दिक्‍कत है कि वो सेमिफाइनल में चीनी दीवार नहीं लांघ पाती हैं। अब तो सायना पर स्‍पेनी प्रतिद्वंदी मारीन भी हावी होने लगी हैं। ज्‍वाला-पोनप्‍पा अगर अपने कमजोरियों से पार पा लें तो उनसे भी उम्‍मीद है।

कुश्‍ती में आशा के साथ निराशा भी हैं क्‍योंकि दो बार के पदक विजेता सुशील इस बार नहीं होंगे। वैसे तो 8 खिलाडि़यों ने क्‍वालिफाई किया है पर पदक की आश योगेश्‍वर, नरसिंह और विनेश से ही है। नरसिंह यादव पर तो फेडरेशन के निर्णय को सही साबित करने का भी दबाव होगा। इस बार पहली बार ग्रिको-रोमन शैली में भी भारतीय पहलवान ने क्‍वालिफाई किया है पर पदक मुश्किल है।

पेस, सानिया, बोप्‍पना की तिकड़ी से टेनिस में पदक की आस न रखना बेमानी होगी। पर जिस तरह से बोप्‍पना के इच्‍छा के विरूद्ध पेस को उनका जोड़ीदार बनाया गया कहीं वह उन दोनों के बीच आपसी समझ और पदक संभावना को कम न कर दे। कोरिया के खिलाफ दोनों की जीत शुभ संकेत तो हैं, पर ये दोनों अगर विवलंडन भी साथ खेले होते तो बेहतर प्रतिस्‍पर्धा में अपने कमियों को दूर कर पदक संभावना को बढ़ा सकते थे। यही हार सानिया मिर्जा का भी है, उन्‍होंने विवलंडन अलग जोड़ीदार के साथ ही खेला। इन सब के बावजूद 1 पदक की आशा तो कर सकते हैं।

अगर मुक्‍केबाजी में देखें तो बिजेन्‍दर पहले से ही नहीं थे पर सबसे ज्‍यादा निराशा मैरिकॉम के क्‍वालिफाई न करने से हुई। शिव थापा और विकास कृष्‍णन से उम्मिद तो है पर पदक पक्‍का नहीं दिख रहा।

तिरंदाजी में अगर दीपीका कुमारी ख्‍याती के अनुरूप्‍ प्रदर्शन करे तो व्‍यक्तिगत और टीम दोनों में पदक मिल सकता है। क्‍योंकि अभी हाल ही में टीम इवेंट में रजत पदक भारत ने जीता है। एक पदक की आश तो यहॉं से बनती है बस कोरिआई प्रतिद्वंदी से थोड़ा सावधान रहें।

एथलेटिक्‍स में भी भारत से 36 खिलाड़ी जा रहें हैं पर सभी लोगों का सर्वश्रेष्‍ठ प्रदर्शन ओलंपिक पदक विजेताओं से काफी पीछे है। ऐसे में अगर ये सब फाइनल में भी पंहुच जाए तो उपलब्धि होगी। टींटू लूका से 800 मीटर में कुछ आस बनी हैं अगर वेा अपने प्रदर्शन में सुधार करें तो, अब तो पिछले बार की विजेता भी इसमें भाग नहीं ले रही हैं। एक धुंधली आस तो 4 गुणा 400 रिले मलिा टीम से भी है।

भारोत्‍तोलन में दो खिलाड़ी भाग ले रहे हैं। पर ये दोनों स्‍वर्ण विजेताओं से 30-40 की.ग्रा. कम वजन उठा रहें तो पदक की आस तो नहीं कर सकते हैं। पर भारोत्‍तोलकों ने विगत में विवाद और निलंबन झेला है तो इनका भाग लेना भी उपलब्धि है।

बाकी के खेल जैसे, स्‍वीमींग, जूडो, रोईंग में पदक की संभवाना तो नहीं दिखती पर जिम्‍नास्टिक और पोलो से आश्‍चर्यजनक परिणाम की आशा कर सकते हैं।

अत: भारतीय टीम अपेक्षाओं पर कितना खरा उतरती है तो वह है:- निशानेबाजी में 3-4, टेनिस-1, बैडमिंटन-1, कुश्‍ती-1, हॉकी-1, तिरंदाजी-1, मुक्‍केबाजी-1 कुल मिलाकर 9-10 पदक इसमें 1-2 स्‍वर्ण की उम्‍मीद भी कर सकते हैं। TOP अभियान के बाद 10 से ज्‍यादा की उम्‍मीद लगाना लाजिमी है पर हकीकत 10 से आगे बढ़ता नजर नहीं आ रहा है।

(कृपया इसे सामान्‍य खेल समझ पर आधारित खेल प्रेमी का विश्‍लेषण समझें)

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